नर हो न निराश करो मन को कविता | मैथिली शरण गुप्त की कविता | nar ho n nirash karo man ko poem ( kavita) ka arth (explain)
नर हो न निराश करो मन को कविता | मैथिली शरण गुप्त की कविता | nar ho n nirash karo man ko poem ( kavita) ka arth (explain)
नर हो न निराश करो मन को, मैथिली शरण गुप्त,कविता,poem कविता पढ़िए ।
दोस्तो:-
यह कविता ' नर हो न निराश करो मन को ' बहुत सुंदर कविता है । यह बहुत प्रेरणादाई कविता है।
इस कविता को मैथिली शरण गुप्त जी ने लिखा है।यह कविता निराश व्यक्ति के जीवन में आशा का संचार करता है।
मित्रो मोटीवेशन के लिए बहुत से लेख कविताएं विद्वानों ने लिखे है, लेकिन मेरे अनुसार सबसे अच्छा मोटीवेशन देने वाली कविता है ' नर हो न निराश करो मन को ' जिसे लिखा
है , महान कवि मैथिली शरण गुप्त ने।
इस लिए इस कविता को पढ़े और अपनाए।
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कविता
नर हो न, निराश करो मन को।
कुछ काम करो, कुछ काम करो,
जग में रहकर कुछ नाम करो।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो,
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को,
नर हो ,न निराश करो मन को।। । ।।
अम्मा जरा देख तो उपर ,हिंदी कविता :-
वीर सैनिको की कविता , लेखक, रामधारी सिंह दिनकर :-
कविता का अर्थ:-
दोस्तो कविता के इस अंश का अर्थ है कि हम मनुष्य है , ईश्वर ने हमें मनुष्य के रूप में जन्म दिया है,काम करने के लिए
इस शरीर का प्रयोग करो कुछ काम करो इस संसार में अपना नाम करो आप मनुष्य हो निराश न हो।आपका जन्म किस लिए हुआ है इसे जानो,काम करो, ।
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संभालो कि सुयोग ना जाए चला,
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला?
समझो जग को ना निरा सपना,
पथ आप प्रशस्त करो अपना।
अखिलेश्वर है अवलंबन को,
नर हो, ना निराश करो मन को।। २।।
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कविता का अर्थ:-
दोस्तो कविता के इस भाग का अर्थ है कि , संभल जाओ कहीं अच्छा समय चला न जाय।
कभी भी अच्छा कर्म बेकार नहीं जाता, संसार को बुरा सपना मत समझो ,अपने लक्ष्य के तरफ चले ईश्वर आपके साथ है,
आप मनुष्य है मन को निराश न करे।
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निज गौरव का नित ज्ञान रहे,
हम भी कुछ हैं, यह ध्यान रहे।
सब जाए अभी ,पर मान रहे,
मरणोत्तर गुंजित गान रहे।
कुछ हो, न तजो निज साधन को,
नर हो, न निराश करो मन को।।३।।
कविता का अर्थ:-
दोस्तो कविता के इस अंश का अर्थ है कि कार्य करो ऐसा की मरने के बाद भी लोग याद करे।
नर हो न निराश करो मन को
सब वांछित वस्तु - विधान किए।
तुम प्राप्त करो उनको न अहो,
फिर है यह किसका दोष कहो?
समझो न अलाभ्य किसी धन को,
नर हो, न निराश करो मन को।।४।।
दोस्तो कविता के इस भाग का अर्थ है कि ,यह सारा संसार
कविता का अर्थ:-
दोस्तो कविता के इस भाग का अर्थ है कि ,यह सारा संसार
ईश्वर का है ,ईश्वर ने सब चीजें आपके लिए बनाए है उन्हें आप प्राप्ति करो , लेकिन अहंकार मत करो।
किसी गौरव के तुम योग्य नहीं,
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किसी गौरव के तुम योग्य नहीं,
कब कौन तुम्हे सुख भोग्य नहीं?
जन हो तुम भी जगदीश्वर के,
सब हैं जिसके अपने घर के।
फिर दुर्लभ क्या उनके जन को,
नर हो, न निराश करो मन को।।५।।
दोस्तो कविता के इस भाग अर्थ है कि आप ,हम सब ईश्वर के बच्चे है,इसलिए हमारे लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है हम सब सुख को प्राप्त कर सकते हैं।आप मनुष्य हो निराश न हो।
कविता का अर्थ:-
दोस्तो कविता के इस भाग अर्थ है कि आप ,हम सब ईश्वर के बच्चे है,इसलिए हमारे लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है हम सब सुख को प्राप्त कर सकते हैं।आप मनुष्य हो निराश न हो।
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करके विधिवाद न खेद करो,
निज लक्ष्य न्निरंतर भेद करो।
बनता बस उद्यम ही विधि है,
मिलती जिससे सुख की निधि है।
समझो धिक निष्क्रिय जीवन को,
नर हो, न निराश करो मन को।।६।।
मित्रो कविता के इस भाग का अर्थ है कि अपना लक्ष्य निर्धारित करो और उसे प्राप्त करने की कोशिश करो,क्योंकि कार्य करने से ही सुख की प्राप्ति हो सकती है
बिना काम के जीवन को धिक्कार समझो।
आप मनुष्य हो निराश न हो
नर हो न निराश करो मन को।
मैथिली शरण गुप्त , विकिपीडिया
कविता का अर्थ:-
मित्रो कविता के इस भाग का अर्थ है कि अपना लक्ष्य निर्धारित करो और उसे प्राप्त करने की कोशिश करो,क्योंकि कार्य करने से ही सुख की प्राप्ति हो सकती है
बिना काम के जीवन को धिक्कार समझो।
आप मनुष्य हो निराश न हो
नर हो न निराश करो मन को।
मैथिली शरण गुप्त , विकिपीडिया
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२ पंचवटी
३ जयद्रथ बध
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७ झंकार
८ जय भारत
९ मात्रभूमि
मनुष्य को हमेशा कार्य करते रहना चाहिए
Q. आपने इस कविता से क्या सिखा?
A. हमें कर्मशील होना चाहिए.
Q. इस कविता के लेखक कौन है?
A. मेथालिशरणं गुप्त
V nice
ReplyDeleteThanks
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